Kavita Jha

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आत्महत्या एक डरावनी प्रेम कहानी # लेखनी धारावाहिक प्रतियोगिता -09-Sep-2022

भाग-17
साधना अपने बचपन की वो घटना जिस कारण उसे हमेशा केंचुएं से डर लगता है सिद्धार्थ को बताते हुए उसकी गोद में सर रखकर सो गई। सिद्धार्थ उसके भोलेपन और मासूम चेहरे पर मोहित हो अपने आप से किए वादे को ही भूल रहा था।
बड़ी भाभी ने सिद्धार्थ का मजाक उड़ाया जब शाम तक उसके कमरे का दरवाजा नहीं खुला,फिर साधना के सांवले रंग और ब्युटी पार्लर वाली के खर्चे और उस पर अपना समय बर्बाद करने को लेकर मजाक बनाया।

अब गतांक से आगे...
साधना अपने सिर पर पल्लू ठीक करते हुए बिस्तर से खड़ी हुई तो उसे कमजोरी के कारण खड़ा होने में दिक्कत होने लगी।वो पलंग पर फिर से बैठ गई। 

सिद्धार्थ ने यह देखा तो उसे पानी पिलाया और पूछा, "तुम ठीक हो ना।अगर जरा भी तबियत खराब लग रही है तो अभी आराम करो। मैं ओ.आर.एस. का घोल लाता हूंँ, शायद तुम्हारा बी.पी. लो हो गया है इसी कारण तुम्हें चक्कर आ रहें हैं।

भाभी दरवाजे के पास खड़ी हो कुटिल मुस्कान बिखेर रही थी।

"वाह! क्या बात है बड़का बाबू!" अपने एक हाथ को हवा में हिलाते हुए उसने कहा।...
"बड़ी देखभाल हो रही है अपनी कनिया की, ऐसे तो सर पर चढ़ जाएगी आपके। फिर शुरू करेगी ता..ता.. थईया..."
.. ताली बजाते और कमर मटकाते हुए सिद्धार्थ की भाभी बोली तो सिद्धार्थ ने अपने दोनों हाथ जोड़कर कहा,
" बड़की भौजी आप अभी जाओ यहाँ से।यह आ जाएगी।"

सिद्धार्थ की बड़ी भाभी गाँव देहात की थी। बहुत ही तंज कसने वाली। बस यह नजारा जब दीपा की आत्मा ने देखा तो सबसे पहले इसी भाभी के सहारे अपने मकसद को अंजाम देने वाली थी दीपा। वो भाभी के शरीर में प्रवेश कर गई और साधना को पलंग से खींच कर उठाया और जोर से धकेल दिया।

हे! भगवान भाभी पर भी पता नहीं कौन सा भूत चढ़ जाता है। इन्हें कुछ कहना बेकार है। सिद्धार्थ ने मन ही मन सोचा उसे भाभी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। कितनी बार माँ को समझाया है मुझे इस भाभी के बोलने का तरीका बिल्कुल पसंद नहीं है। इन्हें मेरे कमरे में या मेरे पास मत भेजा करो, पर मां है कि समझती ही नहीं है। 

किसी दिन गुस्से में इनका खून हो जाएगा मुझसे।

पता नहीं क्या नजर आया माँ को इसमें जो इस जाहिल अनपढ़ गंवार को हमारे घर की बहु बनाकर ले आई।

भाभी के शरीर में दीपा ने घुसकर जो धक्का दिया साधना को उससे उसका सिर दीवार से टकराने ही वाला था कि तभी सिद्धार्थ ने लपककर उसे अपनी बांँहों में समेट लिया। 

दीपा की आत्मा जिसने थोड़ी देर पहले ही बड़ी भाभी के सहारे साधना को धक्का दिया और दरवाजे से बाहर जाते ही उसके शरीर से निकल खुश हो रही थी कि साधना का सिर दीवार से टकराएगा और फूट जाएगा खूब खून बहेगा और वह भी मर जाएगी फिर मेरा सिद्धार्थ सिर्फ मेरा ही रहेगा।

लेकिन जब सिद्धार्थ ने उसे अपनी बांहों में समेट कर दीवार से टकराने से बचा लिया तो दीपा अपने मंसूबे पर पानी फिरता देख तिलमिला उठी। यह निशाना खाली गया ...पर कब तक सिद्धार्थ तू इसे बचा पाएगा।तेरी यादों में बस मैं रहूंगी। कोई और मेरी जगह नहीं ले सकती। इसका खात्मा तो मैं करके ही रहूंगी।

उधर भाभी बड़बड़ाते हुए जा रही थी।कल की आई दुल्हनिया ने जादू कर दिया है देवर जी पर।देखो कैसे उसकी तरफदारी कर रहा है। पत्नी भक्त हो गया है। 

"अरे! का हुआ बड़की भौजी। काहे तिलमिला रहीं हैं। कौनो आपको कुछ कह दिया का? जल्दी बताईए अभी उसको सजा दिलवाते हैं। किसका इतना मजाल हो गया जो हमारी बड़की भौजी के कुछो .. भी कह दे!", गुड़िया अपनी बड़ी भाभी को जब गुस्से में बड़बड़ाते देखती है तो चुटकी लेते हुए बोली।

" कुछ ना हुआ नन्दो रानी। किसका मजाल जो हमको कुछ कहे।हम उसका दादा परदादा ना याद दिला देहि ।
ऊ तो  कनिया को सिर चढ़ा रहे हैं हम वहीं कह रहे थे कि बड़का बाबू अभी से सिर मत चढ़ाओ बाद में आपको ही दिक्कत होगी।"

" अरे! भौजी सच कहूं तो मुझे यह नबकी भौजी बिल्कुल अच्छी नहीं लगी। अपने परिवार में बिल्कुल भी मैच कर रही है क्या? कितनी शर्म आएगी इसे अपने साथ कहीं ले जाने में ।  आप और मंझली भौजी दोनों कितनी सुन्दर हो और इस काजल की डिबिया को पता नहीं कहां से उठाकर ले आया भाई।
भाई के साथ तो घोर अन्याय हो गया। इतनी बदसूरत पत्नी पा कर भाई कैसे अपनी उम्र इसके साथ बिताएगा।"

" वही तो हम बोल दिए कि इसके लिए माँ जी पार्लर वाली को बेकार बुलाई है।वो कितना भी इसको रंग पोत दे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला इसके रंग में।"

"अरे! छोड़ो भौजी उसको ...
पहले हम ही अपना मेकअप करवा लेते हैं। आखिर आप घर की सबसे बड़ी बहू हो और मैं इस घर की सबसे छोटी बेटी । हमें भी मेहमानों का स्वागत करना होगा। उसको तो देखना मैं ऐसा तैयार करवाती हूँ कि जीवन भर याद रखेगी अपनी रिशेपशन पार्टी।"

"चल छुटकी नन्दो जी जल्दी से तैयार हो जाते हैं। लोग आते ही होंगे। अच्छा तुम वो अपनी शादी का लंहगा लाई हो ना वही पहनोगी ना।"
" ना भौजी ऊ ना लाए शादी का लंहगा हम तो सोचे थे इस बार मांँ नया लंहगा दिलवा देंगी पर देखो ना ई हल्की सी साड़ी पकड़ा दी है ।बताओ भाई का रिसेप्शन पार्टी में ई साड़ी पहने । हम तो इनको बोले थे आप ही दिलवा दो पर ऐसा कंजूस परिवार में हमको बिआह दिए हैं कि पूछो मत भौजी । एक पैसा नहीं हम पर खर्च करना चाहते हैं।"

"नबकी का जो इतना कपड़ा आया है उस पर हमारा भी तो अधिकार है। अपने हाथों से तो एक सस्ती सी साड़ी ही पकड़ा देगी। चल भौजी उसका पेटी बक्सा से बढ़िया सा कुछ खोजते हैं।"

"ऊ महारानी तो आराम फरमा रही है ।माई भौजी कुछो सिखाई नहीं कि ससुराल में ननद और जेठानी को अपने बक्से में से कपड़ा निकाल कर दें। एक हमारी भौजी थी जो हमको अपना बक्सा का चाबी पकड़ा दी कि जो पसंद आए हो ले लो।"

अरे! ये दोनों कितनी लालची हैं मेरी ननद और जेठानी होती तो मैं तो अपना कुछ भी ना देती इनको। दीपा की आत्मा दोनों की बातें सुन रही थी। इन दोनों को अच्छा सबक सिखाऊंगी पर इससे पहले उस साधना को तो सिद्धार्थ के जीवन से हटा दूं।

क्रमश:

आपको यह कहानी पसंद आ रही है यह जानकर खुशी हुई। 
इस कहानी से जुड़े रहने के लिए मेरे प्रिय पाठकों का तहे दिल से शुक्रिया। आप इसी तरह कहानी से जुड़े रहिए और अपनी समीक्षा के जरिए बताते रहिए कि आपको कहानी कैसी लग रही है।

कविता झा'काव्या कवि'
#लेख

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1 Comments

Khushbu

05-Oct-2022 03:52 PM

Nice

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